"सेवा का प्रतीक"

स्व. डॉ. हरी चंद मिड्ढा

डॉ. हरी चंद मिड्ढा का आरंभिक जीवन

डॉ. हरी चंद मिड्ढा का जन्म 1942 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक छोटे से गाँव लुड्डन में हुआ था। उनका बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता, और विभाजन के दौरान उनका परिवार भारत आकर बसा। परिवार के पुनर्स्थापन की इस कठिन यात्रा ने उनके जीवन में संघर्ष और आत्मनिर्भरता की नींव डाली। भारत में बसने के बाद, उन्होंने शिक्षा को अपने जीवन का केंद्र बनाया और चिकित्सा के क्षेत्र में करियर बनाने का सपना देखा। उनके समय में चिकित्सा क्षेत्र में प्रवेश पाना और उसे सफलतापूर्वक पूरा करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण था, परंतु उनके आत्म-विश्वास और कठिन परिश्रम ने इस राह को संभव बनाया। उन्होंने बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (BAMS) की डिग्री हासिल की, जो कि एक बड़ी उपलब्धि थी और उनके परिवार व समाज के लिए भी गर्व का विषय बना। डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ. मिड्ढा ने भारतीय सेना में चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने दस वर्षों तक सेवा दी। सेना में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने न केवल चिकित्सा कौशल को निखारा, बल्कि अनुशासन, सेवा, और समर्पण के गुणों को भी आत्मसात किया। सेना में सेवा देने के बाद, डॉ. मिड्ढा ने अपनी चिकित्सा सेवाओं को समाज तक पहुँचाने का निर्णय लिया और जींद में आकर बस गए। इस निर्णय के बाद उन्होंने चिकित्सा सेवा को एक मिशन के रूप में लिया, और अपनी प्रतिष्ठा एक करुणामय और कुशल चिकित्सक के रूप में बनाई। उनका आरंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा होने के बावजूद समाज और सेवा के प्रति समर्पण की मिसाल बना।

सेना में चिकित्सा सेवा

डॉ. हरी चंद मिड्ढा ने भारतीय सेना में चिकित्सा अधिकारी के रूप में 10 वर्षों तक सेवा दी, जहाँ उन्होंने सैनिकों और उनके परिवारों को चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कीं। सेना में उनकी सेवा ने उन्हें अनुशासन, साहस, और समर्पण का महत्व सिखाया, जो बाद में उनके सार्वजनिक जीवन में भी दिखा।

जनसेवा के लिए जींद में चिकित्सीय क्लिनिक की स्थापना

सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद, डॉ. मिड्ढा ने जींद में एक छोटा क्लिनिक खोला और सैकड़ों गरीब मरीजों का निःशुल्क उपचार किया। उनकी दी गई छोटी "पुरीया" दवाइयाँ बेहद लोकप्रिय थीं, जिन्हें वे जरूरतमंदों को बिना किसी शुल्क के प्रदान करते थे।

महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए विशेष पहल

डॉ. मिड्ढा ने समाज में महिलाओं और कमजोर वर्गों की भलाई के लिए विशेष योजनाओं और प्रयासों का समर्थन किया। उन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कदम उठाए, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिली।

कृषि और ग्रामीण विकास में योगदान

अपने राजनीतिक करियर के दौरान, डॉ. मिड्ढा ने कृषि, ग्रामीण विकास और किसानों के हित में महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने क्षेत्र में किसानों की सहायता के लिए कई योजनाओं का समर्थन किया और उनके कल्याण के लिए प्रयास किए।

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार

डॉ. हरी चंद मिड्ढा ने शिक्षा को समाज की प्रगति का आधार माना और जींद में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने सरकारी विद्यालयों में स्वच्छ पेयजल, शौचालय, और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं का विस्तार किया, जिससे बच्चों को बेहतर शिक्षण वातावरण मिल सके।

समाज में एक करुणामय और समर्पित नेता की छवि

डॉ. मिड्ढा की विनम्रता और करुणा ने उन्हें सभी वर्गों में लोकप्रिय बना दिया। उनके नि:स्वार्थ सेवा भाव और लोगों के प्रति निष्ठा ने उन्हें समाज में एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया, जिसकी प्रेरणा आज भी जींद के लोग महसूस करते हैं।

मिड्ढा परिवार की सामाजिक विरासत

मिड्ढा परिवार की विरासत हमेशा से समाज सेवा, समर्पण और करुणा का प्रतीक रही है, जो आज भी मजबूत और प्रभावी तरीके से जारी है। यह परिवार न केवल अपने सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसने जनकल्याण के लिए जो आदर्श स्थापित किए हैं, उन्हें समय-समय पर आने वाली पीढ़ियाँ निभाती रही हैं। डॉ. हरी चंद मिड्ढा ने चिकित्सा सेवा, शिक्षा, और समाज के कमजोर वर्गों की मदद करते हुए, एक समर्पित समाजसेवक के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। उनके जीवन के इन मूल्यों को उनके पुत्र, डॉ. कृष्णा मिड्ढा ने पूरी निष्ठा के साथ अपनाया और अपने कार्यों के माध्यम से उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। चाहे वह राजनीति हो या सामाजिक कार्य, डॉ. कृष्णा मिड्ढा ने अपने पिता द्वारा स्थापित मूल्यों को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया और हमेशा जनहित को प्राथमिकता दी। मिड्ढा परिवार ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उनका काम और कार्य नीति समाज के लिए एक प्रेरणा बने। आज भी परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा इस विरासत को लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है, और मिड्ढा परिवार समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभा रहा है। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहेगी और समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने का कार्य करती रहेगी।


नेतृत्व, दृष्टिकोण और समाजिक योगदान
सेना से समाज सेवा तक का सफर

सेना में 10 साल की सेवा के बाद, डॉ. मिड्ढा ने अपने चिकित्सीय सेवाओं को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और जींद में आकर बस गए। वहां उन्होंने एक छोटे क्लिनिक की स्थापना की, जहाँ उन्होंने वर्षों तक सैकड़ों मरीजों का इलाज किया। वे केवल एक कुशल चिकित्सक ही नहीं बल्कि एक करुणामय समाजसेवक भी बने। उनकी छोटी "पुरीया" या दवाइयां, जो जरूरतमंदों को नि:शुल्क मिलती थीं, जींद के लोगों में अत्यंत लोकप्रिय थीं।

जनसेवा से राजनीति तक का मार्ग

जींद के लोगों के प्रति उनकी सेवा और उनके प्रति लोगों का विश्वास ही था जिसने उन्हें राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया। 2009 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (INLD) के टिकट पर जींद से चुनाव लड़ा और एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की। अपनी विनम्रता और सेवा भावना के कारण वे सभी समुदायों में लोकप्रिय हो गए और राजनीति में भी जनकल्याण को प्राथमिकता दी।

स्थायी प्रभाव और भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

मिड्ढा परिवार की सेवा की इस परंपरा ने क्षेत्र में एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है। उनकी समाजसेवा की भावना और जरूरतमंदों की मदद करने का संकल्प आज भी परिवार में जारी है। जींद के लोग आज भी इस परिवार को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाले के रूप में मानते हैं। मिड्ढा परिवार की यह विरासत आने वाली पीढ़ियों को जनसेवा के प्रति प्रेरित करती रहेगी।